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हर आरंभ का अंत सुनिश्चित, हर अंत नई शुरुआत है / पल्लवी मिश्रा

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हर आरंभ का अंत सुनिश्चित, हर अंत नई शुरुआत है,
रात ढले तो आए सवेरा, साँझ ढले तो रात है।

ईश्वर ने जो चक्र बनाया, मानव उसको समझ न पाया,
क्यों पतझड़ के बाद बसंत, क्यों जेठ गए बरसात है?

हम सब कश्ती, औ प्यादे, जिस घर चाहे खुदा चला दे,
अगली चाल का पता नहीं, कब शह मिले कब मात है?

सुख सहर्ष अपनाते हैं जब, क्यों देख दुख घबराते हैं तब?
सिक्के के दो पहलू अलग हो सकें, नामुमकिन ये बात है।

ठहर सका क्या कभी ये जीवन, पल पल हो रहा परिवर्तन,
कल जिस गली से उठी थी अर्थी, उसी से गुजरी आज बारात है।