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हर एक इंसान अपने आप में एक दुनिया है / गुन्नार एकिलोफ़

हर एक इंसान अपने आप में एक दुनिया है, जीवों से भरा हुआ
जो हैं अंधे विद्रोह में
अपने आप के ही खिलाफ जो राजा सम राज करता है उन पर.
हर आत्मा में एक हजार आत्माएं बंदी हैं,
प्रत्येक दुनिया में एक हजार और दुनिया है छिपी हुई
और ये अंधी, ये छिपी हुई दुनिया
असल है और जीवंत है, हालांकि अपरिपक्व है,
उतनी ही सच्ची जितना कि सच्चा मेरा अस्तित्व है. और हम राजा लोग
और हमारे भीतर उपस्थित हज़ार संभावित राजकुमार
स्वयं ही विषयों के दास हैं, स्वयं ही बंदी हैं
किसी दिव्य आकृति में, जिसके अस्तित्व और स्वरुप को
उसी रूप में लेते हैं हम जैसे हमारे वरिष्ठ लेते हैं
अपने वरिष्ठों को. उनकी मृत्यु और उनके प्रेम से
हमारी अपनी भावनाओं ने पाया है एक रंग.

जैसे कि जब एक बेहद शक्तिशाली स्टीमर गुज़रता है
सुदूर, क्षितिज पर, वहाँ होती है
बेहद चमकीली शाम. -और हम नहीं जानते कि
जबतक एक लहर पहुँचती है समुद्री तट पर हम तक,
पहले एक, फिर एक और फिर अनगिनत
करती है शोर और धड़कती है तब तक जबतक कि सबकुछ नहीं हो जाता
पूर्ववत. -सब कुछ फिर भी अलग ही होता है.

फिर हम एक विलक्षण चिंता कि छाया में होते है
जब कुछ संकेत हमें बताते हैं कि लोग यात्रा कर चुके हैं,
कि उनमें से कुछ को संभावित मुक्ति मिल चुकी है.


(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)