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हर एक चेहरे पे कुंदा हकायतें देखो / हसन अब्बास रजा

हर एक चेहरे पे कुंदा हकायतें देखो
ख़ुलूस देख चुके हो तो नफ़रतें देखो

जो अहल-ए-दिल हो तो एहसास-ए-आगही के लिए
बुझ निगाहों में तहरीर आयतें देखो

रगों में खौलते ख़ून की क़सम न खाओ कभी
गुदाज़-जिस्मों में पिन्हाँ सलाहियतें देखो

जो हो सके तो कभी तपती शाह-राहों पर
टपकते ख़ून से लिखी इबारतें देखो

नफ़स नफ़स में है एहसास-ए-यूरिश-ए-हस्ती
ख़ुद अपनी ज़ात से अपनी बगावतें देखो

लबों पे मोहर-ऐ-ख़ामोशी के बा-वजूद राजा’
गुज़र रही हैं जो अंदर क़यामतें देखो