भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर किसी को ख़ुशी चाहिये / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर किसी को ख़ुशी चाहिए
पुरसुकूं ज़िंदगी चाहिए

चाहतों की कहाँ इंतिहा
जाम को तिश्नगी चाहिए

पार कर लूंगा सब मुश्किलें
बस दुआ आप की चाहिए

आर्जू और कुछ भी नहीं
इक तिरी बंदगी चाहिए

जीत को हौसले के सिवा
क़़ल्ब में आग भी चाहिए