पवन, धाराप्रवाहित है
बढ़ रही लाठी टेकती बुढ़िया
बच्चे बैग लटकाए यूनिफ़ार्म डाले जा रहे हैं
घोंसलों से पक्षी उतर रहे हैं
चाय की केतली भाप छोड़ रही है
चलने को आतुर है, छाती से चिपका लाड़ला
सुकुमार रूपसी असहज है
छिपता नहीं बदन
पवन, धाराप्रवाहित है
बढ़ रही लाठी टेकती बुढ़िया
बच्चे बैग लटकाए यूनिफ़ार्म डाले जा रहे हैं
घोंसलों से पक्षी उतर रहे हैं
चाय की केतली भाप छोड़ रही है
चलने को आतुर है, छाती से चिपका लाड़ला
सुकुमार रूपसी असहज है
छिपता नहीं बदन