भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर घड़ी अक्से-रुख़े-यार लिए फिरती है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:25, 7 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर घड़ी अक्से-रुख़े-यार<ref>प्रियतम के चेहरे की छवि</ref> लिए फिरती है
कितने महताब<ref>चाँद</ref> शबे-तार लिए फिरती है

सुन तो लो, देख तो लो, मानो न मानो, ऐ दिल
शामे-ग़म सैकड़ों इक़रार लिए फिरती है

है वही हल्क़ः-ए-मौहूम<ref>अस्पष्ट वृत्त</ref> मगर मौजे-नसीम<ref>हवा की लहर</ref>
तारे-गेसू में ख़मे-दार लिए फिरती है

बाग़बाँ होश केः बरहम<ref>नाराज़</ref> है मिज़ाजे-गुलशन
हर कली हाथ में तलवार लिए फिरती है


शब्दार्थ
<references/>