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"हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर
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हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है। | हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है। | ||
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बेफ़िकरी से सोना भी बड़ी दौलत है॥ | बेफ़िकरी से सोना भी बड़ी दौलत है॥ | ||
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इफ़लास ने सख़्त-मौत आसाँ कर दी। | इफ़लास ने सख़्त-मौत आसाँ कर दी। | ||
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दौलत का न होना भी बड़ी दौलत है॥ | दौलत का न होना भी बड़ी दौलत है॥ | ||
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साँचे में अजल के हर घडी़ ढलती है। | साँचे में अजल के हर घडी़ ढलती है। | ||
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हर वक़्त यह शमए-ज़िन्दगी जलती है॥ | हर वक़्त यह शमए-ज़िन्दगी जलती है॥ | ||
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आती-जाती है साँस अन्दर-बाहर। | आती-जाती है साँस अन्दर-बाहर। | ||
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या उम्र के हलक़ पर छुरी चलती है॥ | या उम्र के हलक़ पर छुरी चलती है॥ | ||
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हासिल न किया महर से ज़र्रा तुमने। | हासिल न किया महर से ज़र्रा तुमने। | ||
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दरिया से पिया न एक क़तरा तुमने॥ | दरिया से पिया न एक क़तरा तुमने॥ | ||
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‘अमजद’ साहब! ख़ुदा को क्या समझोगे? | ‘अमजद’ साहब! ख़ुदा को क्या समझोगे? | ||
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अब तक ख़ुद ही को जब न समझा तुमने॥ | अब तक ख़ुद ही को जब न समझा तुमने॥ | ||
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23:19, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है।
बेफ़िकरी से सोना भी बड़ी दौलत है॥
इफ़लास ने सख़्त-मौत आसाँ कर दी।
दौलत का न होना भी बड़ी दौलत है॥
साँचे में अजल के हर घडी़ ढलती है।
हर वक़्त यह शमए-ज़िन्दगी जलती है॥
आती-जाती है साँस अन्दर-बाहर।
या उम्र के हलक़ पर छुरी चलती है॥
हासिल न किया महर से ज़र्रा तुमने।
दरिया से पिया न एक क़तरा तुमने॥
‘अमजद’ साहब! ख़ुदा को क्या समझोगे?
अब तक ख़ुद ही को जब न समझा तुमने॥