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हर तरफ़ जाले थे, बिल थे, घों‍सले छ्प्पर मे‍ में थे जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर मे में थे ।
दस्ते-शहज़ादी से नाज़ुक कम न थे दस्ते-कनीज़
एक मे में मेहंदी रची थी, इक सने गोबर मे में थे ।
हारने के बाद मै मैं यह देर तक सोचा किया सामने दुशमन थे मेरे या मेरे लशकर मे में थे ।
चन्द सूखी लकडियाँलकड़ियाँ, जलती चिता, ख़ामोश राखजाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्मे-तर मे में थे ।
हर मे में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूरमर के हम महशर मे में है या जीते जी महशर मे में थे ।
बर्क, अंगडाई , घटाएँ, ज़ुल्फ़, आँखें झील-सी
कितने मंज़र एक तेरे दीद के मंज़र मे में थे ।
आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नही
पहले सुनते थे कि ’बेख़ुद’ देवता पत्थर मे थे ।
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