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"हर दिन हो महब्बत का हर रात महब्बत की / अभिषेक कुमार अम्बर" के अवतरणों में अंतर
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हर शख़्स नहीं पाता सौगात महब्बत की। | हर शख़्स नहीं पाता सौगात महब्बत की। | ||
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17:34, 28 जनवरी 2020 का अवतरण
हर दिन हो महब्बत का हर रात महब्बत की,
ताउम्र ख़ुदाया हो बरसात महब्बत की।
नफ़रत के सिवा जिनको कुछ भी न नज़र आए,
क्या जान सकेंगे वो फ़िर बात महब्बत की।
जीने का सलीक़ा और अंदाज़ सिखाती है,
सौ जीत से बेहतर है इक मात महब्बत की।
ऐ इश्क़ के दुश्मन तुम कितनी भी करो कोशिश,
लेकिन न मिटा पाओगे ज़ात महब्बत की।
ख़ुशबख़्त हो तुम 'अम्बर' जो रोग लगा ऐसा,
हर शख़्स नहीं पाता सौगात महब्बत की।