Last modified on 12 फ़रवरी 2010, at 15:53

हर दिशा में घने कुहासे हैं / विनोद तिवारी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 12 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=दर्द बस्ती का / विनोद तिवार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


हर दिशा में घने कुहासे हैं
हम नदी-तट पे रह के प्यासे हैं

आपने आजतक नहीं पूछा
कौन हैं क्या हैं हम कहाँ से हैं

क्रांतियाँ और अपाहिजों का शहर
लोग बेवजह बदगुमाँ से हैं

आप जो भोज दे रहे थे हमें
उसकी आशा में हम उपासे हैं

हम तो सेवक हैं आपसे क्या कहें
जो शिकायत है आसमाँ से है

आप बहरे हैं ये है मजबूरी
और हम लोग बेज़ुबाँ-से हैं