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हर नई रुत के साथ पलटेगी / चिराग़ जैन

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हर नई रुत के साथ पलटेगी
ख़ुश्बू-ए-क़ायनात पलटेगी।

ये सियासत है इस सियासत में
एक प्यादे से मात पलटेगी।

किसकी बातों का क्या यकीन करें
पीठ पलटेगी बात पलटेगी।

रंग परछाई तक का बदलेगा
सुब्ह होगी तो रात पलटेगी।

तुम संभल कर बस अपनी चाल चलो
इक न इक दिन बिसात पलटेगी।

वक्त ज़ब-जब भी करवटें लेगा
ज़िन्दगी साथ-साथ पलटेगी।