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हर वह मुख जिसे कभी चूमा होगा तुमने / वार्सन शियर / राजेश चन्द्र

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हर वह मुख जिसे कभी चूमा होगा तुमने
सिर्फ़ एक अभ्यास था
वे तमाम जिस्म जिनसे कपड़े उतारे होंगे तुमने
और चलाया होगा जिनमें हल
वे सब तैयारियाँ भर थीं तुम्हारी मेरे लिए ।

मुझे नहीं लगता बुरा उन्हें चखने में
यादों में तुम्हारे मुख की
वे, बस, एक लम्बा गलियारा थे
एक दरवाज़ा अधखुला-सा
अकेला सूटकेस पड़ा है अब भी कन्वेयर बेल्ट पर
क्या यह एक लम्बी यात्रा थी ?

क्या मुझे ढूँढ़ने में
तुम्हें लम्बा वक़्त लगा ?
अब तुम यहाँ पर हो,
तुम्हारा स्वागत है घर में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र