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हर समंदर पार करने का हुनर रखता है वो / वीनस केसरी

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हर समंदर पार करने का हुनर रखता है वो
फिर भी सहरा पर सफ़ीने का सफ़र रखता है वो

बादलों पर खाहिशों का एक घर रखता है वो,
और अपनी जेब में तितली के पर रखता है वो

हमसफ़र वो, रहगुज़र वो, कारवाँ, मंजिल वही,
और खुद में जाने कितने राहबर रखता है वो

चिलचिलाती धूप हो तो लगता है वो छाँव सा,
धुंध हो तो धूप वाली दोपहर रखता है वो

उससे मिल कर मेरे मन की तीरगी मिटती रही,
हर तिमिर पर सद्विचारों की सहर रखता है वो

जानता हूँ कह नहीं पाया कभी मैं हाले दिल,
पर मुझे मालूम है सारी खबर रखता है वो