भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर सम्त लहू रंग घटा छाई सी क्यूँ है / फ़ुज़ैल जाफ़री

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 5 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ुज़ैल जाफ़री }} {{KKCatGhazal}} <poem> हर सम्त ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर सम्त लहू रंग घटा छाई सी क्यूँ है
दुनिया मेरी आँखों में सिमट आई सी क्यूँ है

क्या मिस्ल-ए-चराग़-ए-शब-ए-आख़िर है जवानी
शिर्यानी में इक ताज़ा तवानाई सी क्यूँ है

दर आई है क्यूँ कमरे में दरियाओं की ख़ुश्बू
टूटी हुई दीवारों पे ललचाई सी क्यूँ हैं

मैं और मेरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
फिर बरसों से दोनों में सफ़-आराई सी क्यूँ है