हर सुबह को गुंचे में बदल जाती है
हर शाम को शमा बन के जल जाती है
और रात को जब बंद हों कमरे के किवाड़
छिटकी हुई चाँदनी में ढल जाती है
हर सुबह को गुंचे में बदल जाती है
हर शाम को शमा बन के जल जाती है
और रात को जब बंद हों कमरे के किवाड़
छिटकी हुई चाँदनी में ढल जाती है