भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर सू ख़ुशी के रंग को हैं घोलने लगे / राम नाथ बेख़बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर सू ख़ुशी के रंग को हैं घोलने लगे
पंछी चहक के बाग़ से कुछ बोलने लगे।

सूरज की जब चमन पे पड़ी सरसरी नज़र
हर शाख़ पर प्रसून नयन खोलने लगे।

हैं ख़ुशनुमा बयार में हर चीज़ ख़ुशनुमा
अब डाल, पात, फूल यहाँ डोलने लगे।

गुंजार करते फूल की हर इक दुकान पर
भौंरें मधु के भाव को हैं मोलने लगे।

फ़ुर्सत से आज बैठके ऊँचे मचान पर
हम भी तुम्हारी यादों की तह खोलने लगे।