भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर सू नहीं थे शूल,अभी कल की बात है / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 18 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर सू नहीं थे शूल, अभी कल की बात है
राहों के थे उसूल, अभी कल की बात है

क़ाफी थी एक ठेस बिखरने के वास्ते
इंसान भी थे फूल, अभी कल की बात है

उम्रों का वो लिहाज़ कि बरगद की राह में
आते न थे बबूल, अभी कल की बात है

दोनों ही एक डाल के पंछी की तरह थे
ये राम वो रसूल, अभी कल की बात है

आती थी बात जब भी वतन के वक़ार की
क़ुरबानी थी क़ुबूल, अभी कल की बात है

अपनी तो ख़ैर गिनती दिवानों ही में रही
करते थे तुम भी भूल, अभी कल की बात है