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हर सू नहीं थे शूल,अभी कल की बात है / हस्तीमल 'हस्ती'

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हर सू नहीं थे शूल, अभी कल की बात है
राहों के थे उसूल, अभी कल की बात है

क़ाफी थी एक ठेस बिखरने के वास्ते
इंसान भी थे फूल, अभी कल की बात है

उम्रों का वो लिहाज़ कि बरगद की राह में
आते न थे बबूल, अभी कल की बात है

दोनों ही एक डाल के पंछी की तरह थे
ये राम वो रसूल, अभी कल की बात है

आती थी बात जब भी वतन के वक़ार की
क़ुरबानी थी क़ुबूल, अभी कल की बात है

अपनी तो ख़ैर गिनती दिवानों ही में रही
करते थे तुम भी भूल, अभी कल की बात है