हवा-ए-तुन्द में<ref>तेज़ हवा में</ref> ठहरा न आशियाँ अपना।
चराग़ जल न सका ज़ेरे आस्माँ अपना॥
जरसने<ref>यात्री दल के ऊँटों की घंटी की आवाज़ ने</ref> मुज़द-ए-मंज़िल<ref>यात्रा का अंत होने की ख़ुशखबरी</ref> सुना के चौंकाया।
निकल चला था दबे पाँव कारवाँ अपना॥
ख़ुदा किसी को भी यह ख़्वाबेबद न दिखलाए।
क़फ़स के सामने जलता है आशियाँ अपना॥
शब्दार्थ
<references/>