Last modified on 11 अप्रैल 2010, at 19:51

हवा का झोंका पुकारता है / जयंत परमार

हवा का झोंका पुकारता है
किसे दरीचा पुकारता है

मैं क़ैद कब तक रहूँगा आख़िर
शजर का साया पुकारता है

पुरानी यादें समेट लेना
गुज़रता लम्हा पुकारता है

लो उड़ गई शोख़ रंग तितली
बदन का सहरा पुकारता है

परों का सम्ते सफ़र है रौशन
कहीं परिंदा पुकारता है

कहीं सदा दे रही हैं शामें
कहीं सवेरा पुकारता है