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हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है / राजीव रंजन प्रसाद

मुझे शबनम के कतरे ने कहा, तुमने बुलाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...

मुझे उस प्यार की सौं है, मुझे अंगार की सौं है
मेरे सीने में जो जल कर, मुझे ही मोम करती है
मेरा सपना, मेरी हर कल्पना, हँसती है मुझ ही पर
मेरा संकल्प घायल है, उदासी व्योम करती है
वो कितना कुछ था करने को, न कर पाया, न हो पाया
लपट है वक़्त की जिसपर, जवानी होम कर दी है

मैं आशा की किसी लौ को ही जलता देख तो पाता
तुम्हीं ने तो पलक मूंदी, हरेक दीपक बुझाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...

वो बातें थीं, महज बातें, कि दुनिया को नया सूरज
वो हर इक आँख में चिड़िया, वो हर इक हाथ में कागज
क्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
नहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना न वो रोना
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची मशालें थीं
मगर हम मेमने थे, हमपे शेरों की दुशालें थीं

गिरे जब हम धरातल पर, जमीं में हम समाते थे
न तुम थे, पर हमारे साथ सूरज था, ये साया है..
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...

तुम्हीं तो थे, जिसे जज़्बों पे मेरे प्यार आता था
तुम्हीं ने तो मुझे खत लिख के जोड़ा एक नाता था
जमीन-ओ-आसमा की बात, जन्मों की कहानी थी
मेरे कदमों तले तुमको कोई दुनिया बसानी थी
मगर जब नौकरी पाने में मेरी डिगरियाँ हारीं
किसी इंजीनियर से हो गयी थी फिर तेरी यारी

सभी बातें कहानी थीं, तुम्हारी बात पानी थी
किताबों में पुरानी भी लिखा, जो सच है माया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...

मुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
भजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
कोई भी साथ आ जाये, नहीं ये दौर है ऐसा
तुम्हारी चुप खरीदेगा, यहाँ बोलेगा बस पैसा

वो झूठे ख्वाब थे, कैसी नशीली थी बहुत दुनिया
तुम्हारा साथ हो तो दो जहाँ को हमने पाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...

4.04.2007