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हवा के बारे में / अम्बिका दत्त


हवा मरती नहीं
कभी-कभी
बीमार या कमजोर जरूर हो जाती है
हवा को सन्निपात हो सकता है
लकवा/मिर्गी के दौरे
हृदय रोग या दम घुटने की बीमारी
यूं वैसे, अमूमन
हम, हवा की खास अहमियत न समझते हों
लेकिन हवा का बीमार होना
कई वक्त मरणासन्न हो जाना
कोई मामूली घटना नहीं होता
हवा/जब बीमार होती है
तब, इतनी जोर से
उठा-उठा कर पटकती है
अपने हाथ पाँव
कि जमीन में गहरे धंसे
पेड़ो तक की जड़े हिल जाती हैं
कई-कई बार बदलते हैं
आसमान के स्थाई रंग
धूल से धुंधला जाती है
पखेरूओं की दृष्टि
काँप-काँप जाते हैं
कमजोर लताओं के अस्थिहीन जिस्म
धरती के अन्दर ही अन्दर
इधर से उधर दौड़ती हैं
गर्म पानी की लहरें
तब तड़क जाते हैं
जमीन के प्यासे पपड़ाए होंठ
ऐसे के कई बार
सरकारी मौसम विभाग
घोषणा कर चुका होता है
हवा के मर जाने की
प्रार्थनाग्रहों से बजने लगते हैं
ठण्डी सीत्कारों के टेप
घेर लेते हैं हमें
दिशाओं के शुष्क उच्छवास !
प्रलय की घोषणाएँ
निराशाओं के उद्घोष !
मृत्यु के जय निनाद !!

लेकिन डरो मत
हवा खा कर जीने वाली मासूम भेड़ों !
कुछ लोग नियत हैं
हवा की परिचर्चा के लिये
वे दिन रात दौड़ रहे हैं
स्ट्रेचर लिये, राहत शिविरों में
इधर से उधर
तत्पर हैं वे
हवा को निरोग कर देने के लिये
वे मना कर रहे हैं
किसी भी राजनैतिक शवयात्रा में सम्मिलित होने से
उनका जोर से बोलना
शरीयत की निगाह में गुनाह है
वे सब/अतृप्त हैं
आकण्ठ प्यासे हैं/आजादी के लिये/स्वास्थय के लिए
उनके हाथों में है
मशालों की कष्ट साध्य रोशनी
सारी तकलीफों/बीमारियों/जेलों/अस्पतालों
सड़को के बीच
वे निरन्तर भुगत रहे हैं प्रसव पीड़ा
परख रहे है/किसी भी बरसात से पहले की तकलीफ
उन्हें यकीन है
हवा कभी मरती नही है
बरसात जब होने ही वाली हो
तो उसके होने से पहले
सभी का/दम घुटने सा लगता है।