उस जोहड़ के पास
मेला भरता था
गणगौर का
चैत्र शुक्ला तीज को
सज जाती
मिठाई की दुकानें
बच्चों के खिलोने
कठपुतली का खेल
कुश्ती का दंगल
उत्सव बन जाता था
गाँव का जीवन।
उजड़ गया है गाँव
अब पसरा है वहाँ
मरघट का सूनापन
हवा बाँचती है मरसिया
गाँव की मौत पर।