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हवा में कीलें-6 / श्याम बिहारी श्यामल

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रेलवे लाइन है
छर्रियों-गिट्टियों में
डूबी-डूबी पटरियाँ
और पटरियों पर
बैठकर किए हुए गूह

कँटीले पौधे हैं
सूखे-टटाए हुए
सिगनल के तार हैं
घिरनियों के ऊपर से
गुजरे हुए

ओवर-ब्रिज है यह
नीचे से गुज़र रहा हूँ मैं
लोटा लिए बैठी स्त्रियाँ
देखकर मुझे उठ जाती हैं
बढ़ता जा रहा हूँ मैं
बेफ़िक्र-सा
झुटपुटे ख़यालों में डूबा

अचानक देखता हूँ
पिल्ले की लाश
ताज़ा है शव
मुलायम सुनहरे रोएँदार
और मरने के बाद भी अल्हड़
मुस्कुराता-सा दिखता पिल्ला
मुझे छेंकता है प्रश्नवाची मौन से
हाहाकारी तटस्थता से
मैं चकराता हूँ
डगमगाता हूँ
और दहाड़ता हूँ

ट्रेन से नहीं कटा है यह पिल्ला
इसके पेट पर
निशान हैं साफ़-साफ़
पत्थर से थकुचे जाने के

भीतर से
झाँक रहा है लाल माँस
और ख़ून !
किसने की है यह हत्या ?
...और क्यों सुला गया है
यह लाश रेल लाइन पर ?

मैं सिगनल-पोल पर चढ़कर
आगाह करना चाहता हूँ
कि गंभीर है यह मामला
मैं चाहता हूँ गोलबंद करना
लोगों को
राजनीतिक हत्याओं के
इस तपते दौर के खिलाफ़