भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा में हाँफ़ती उम्मीद की सूखी नदी रख दी / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 23 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> हवा में हाँफ…)
हवा में हाँफ़ती उम्मीद की सूखी नदी रख दी
तसल्ली के लिए हालात ने इतनी नमी रख दी ।
ग़लत को हम ग़लत कहते इसी कहने की कोशिश में
सियासत ने अंधेरों में हमारी हर ख़ुशी रख दी ।
खिलौना टूट जाने का उसे अफ़सोस तो होगा
कि जिसने प्यार के हर मोड़ पर दीवानगी रख दी ।
कहीं तो आँख से बचकर कहीं कोई बहाने से
कहीं ख़ामोश रातों में हमारी बेबसी रख दी ।
उसे तो नींद आती है कई सपने सुकूं देते
कि जिसके सामने हमने वफ़ा की रोशनी रख दी ।