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हवा से प्रार्थना / ज्ञान प्रकाश चौबे

हवा बहो
बहती रहो लगातार
बिना रूके
जैसे गाँव की नदी

तुम दौड़ो
जैसे ख़ून दौड़ता है
हमारी नसों में
रात के अन्धेरे मे
दौड़ते हैं बेशुमार सपने

हवा बहो
बहती हुई जाओ
मेरे गाँव की गलियों तक
दे आओ हमारा सन्देश
दूर शाम ढले खेतों से लौटते
माँ-बाबूजी को

गाँव की दहलीज़ पर
पूछना बूढ़े पाकड़ से उसका हाल-चाल
और नदी से कहना
मैं रोज़ करता हूँ उसे याद

हवा घूमना
घूमकर मारना ज़रूर एक चक्कर
जहाँ हमने खेली कबड्डी लच्ची डाँड़
और गोल चीके

गलियों में भी मारना
ज़रूर आ रही होगी
आइस-पाइस की आवाज़

देखना माँ का चौका
जहाँ हमने छीनी एक-दूसरे की रोटियाँ
और सब्ज़ियों में बने साझेदार

हवा लौटना
और लौटती बेर ले आना
गाँव-गिराँव की चिट्ठी-पतरी
मेरी प्रिया के लिए
हँसते पीले सरसों के फूल
ले आना गायों की ममता भरी आवाज़
माँ की रोटी की सोंधी सुगन्ध
बथुए का साग, आम का आचार
खेत की मिट्टी से पसीने की बास भी

हवा चलना
और चलती बेर पूछ लेना
बड़े-बूढ़ों से उनकी तबीयत

बूढ़़़ी अम्मा से ले आना
उनके पोपले मुँह का आशीर्वाद
टेकना माथा मेरी ओर से
गाँव के सभी देवता-पितरों को
और आख़िर में जब लौटना
गाँव की चौहद्दी को बोलना मेरा प्रणाम

हवा लौटना
और जल्दी लौटना