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हसरत / ममता किरण

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गाँव
के मकान की
भण्डरिया में
एक अरसे से रखीं
परातें, भगौने, कड़ाही, कलछुल, चमचे
सबको भनक लग गई है
छोटे भैया की बिटिया का ब्याह होने को है

अब तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे
कढ़ाही ने कलछुल से
कलछुल ने परात से,
परात ने चमचे से
चमचे ने भगौने से कहा
ख़ूब रौनक होगी घर में
सारे रिश्तेदार जो आएँगे
हम भी खूब खटर-पटर नाचेंगे
कभी नानी
कभी बुआ, कभी चाची
तो कभी मौसी के हाथों

व्यंजनों की कल्पना करने लगे हैं
सभी बर्तन
कर रहे हैं आपस में
खुशी-ख़ुशी चटर-पटर
याद कर रहे हैं

बड़े भैया की बिटिया का ब्याह
हफ़्तों पहले से जमा हुए रिश्तेदार
धूम-धाम, चहल-पहल
बिटिया की बिदाई
और साथ ही अपनी भी बिदाई
तब से हम बन्द हैं इस भण्डरिया में
कड़ाही ने उदास हो कर कहा …

ख़बर लाई है कलछुल
छोटे भैया की बिटिया का ब्याह हो भी गया
शहर के एक बड़े से फ़ार्म हाउस से
रिश्तेदार मेहमानों की तरह आए
और वहीं से लौट भी गए

यूँ तो इस बात से ख़ुश हैं
परातें, भगौने, कड़ाही, कलछुल, चमचे
कि हो गया छोटे भैया की बिटिया का ब्याह
पर अफ़सोस इस बात का है
कि न तो घर में हुई रौनक …
न जमा हुए रिश्तेदार …
न ही उन्हें मिला मौक़ा
ब्याह में शामिल होने का ।