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हस्ताक्षर आकाश के / सोम ठाकुर

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चंदन की एक डाल से
छूटे अभिशाप नागपाश के
धरती के खुले पत्र पर
उभरे हस्ताक्षर आकाश के

तोड़ दिया हमने उठकर
शिखरों पर बैठे तुम का वहम
सहम गये बढ़ते -बढ़ते
हर बहरी राजनीति के कदम
एक अग्नि -सेतु क्या बँधा
लक्षाघर हुए महल ताश के

कसे बंद मुँह का आकार
सूरज को उगलने लगा
तापवाती हो गयी हवा
पत्थर -तन पिघलने लगा
शरण खोजने लगे स्वयं
अंधे नक्षत्र महानाश के

फैलती शिलाओं को बेधकर
जमे उत्स ठोस किरण ने छुए
घमे हुए व्रक्ष को तराश कर
झुके हुए कंधे सीधे हुए
संजीवित हो गया समय
बीत गये क्षण दिन कि लाश के