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हस्ताक्षर का गीत / नरेन्द्र दीपक

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मैंने ख़ूब होष में रहकर खुषियाँ सभी वसीयत की हैं
जहाँ कहो तुम चलकर कह दूँ जहाँ कहो हस्ताक्षर कर दूँ

मैं वैभव का विक्रेता हूँ
पीड़ा सदा मुझे प्यारी है
प्यास जनम से साथिन मेरी
आँसू से रिष्तेदारी है

जीने का बस यही तरीक़ा मुझको कुछ ज़्यादा भाता है
दर्द समेटा करूँ और मैं मुस्कानों को गिरवी धर दूँ

संघर्षों के दुर्गम पथ का
मंजिल से सीधा नाता है
आँधी पानी वला मौसम
मुझ को बहुत रास आता है

मुस्कानों की हाट उठ गई सुख की केवल याद शेष है
कोई भी क्रेता मिल जाये सारे अनुभव उससे वर दूँ

दुःख जो मन धुला नहीं वह
चलती फिरती हुई लाष है
जीने की इच्छा है मेरी
इसीलिए ग़म की तलाष है

जो भी पीड़ा बेच रहा हो मेरे दरवाजे पर आये
मधुर स्वप्न कुछ शेष बचे हैं उनसे उसकी झोली भर दूँ