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हाँ तुम्हारे बस तुम्हारे प्यार से / सोनरूपा विशाल

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हाँ तुम्हारे बस तुम्हारे प्यार से
दिन हुए मेरे सभी त्योहार से

इक अकेली पंक्ति थी मैं आज तक
तुम मिले तो हो गयी इक गीत मैं
हारकर तुमसे मैं अपने आप को
पा चुकी हूँ वाक़ई अब जीत मैं

स्वप्न सारे हो गये साकार से
हाँ तुम्हारे, बस तुम्हारे प्यार से।

ज़िन्दगी थी फ्रेम में जकड़ी हुई
हो गयी आज़ाद ख़ुशबू की तरह
रेशमी बाँहें लिए हर रात थी
फूल की झालर लिए आई सुबह

उलझनों के गढ़ हुए लाचार से
हाँ तुम्हारे, बस तुम्हारे प्यार से।

बन गयी बंदिश प्रणय के राग की
मेरी धुन को जब तुम्हारे स्वर मिले
जब मिली छाया सघन विश्वास की
मोंगरे के फूल बन कर हम खिले

शब्द जैसे हो गये मल्हार से
हाँ तुम्हारे, बस तुम्हारे प्यार से