भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाँ सुकन्या / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <poem> हाँ, सुकन्या! यह नदी म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ, सुकन्या!
यह नदी में बाढ़-सी तुम
कहाँ उमड़ी जा रही हो

उधर बड़का हाट -
उसमें तुम बिलाओगी
राजपथ पर
रोज़ ठोकर खाओगी

हाँ, सुकन्या!
वहाँ जा कर भूल जाओगी
गीत यह जो गा रही हो

अरी परबतिया!
यही पर्वत तुम्हारा है ठिकाना
यहीं से जन्मी
इसी में तुम समाना
हाँ, सुकन्या!
दूर के ढोल/सुन कर जिन्हें
तुम भरमा रही हो

इधर देखो
यही आश्रम है तुम्हारा
जिसे पूरखों ने
तपस्या से सँवारा
हाँ, सुकन्या!
सुख मिलेगा यहीं सारा
खोजती तुम जिसे अब तक आ रही हो