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हाइकु - भाग 1 / रेशमा हिंगोरानी

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यूँ पहचान
खुद अंदर झाँक
रब को जान!



बदली आई
अखियों में उतरी
जा नहीं पाई



तेरी औ’ मेरी
कब से बन गया
तेरी या मेरी?



आया वो जब
था गुहर - तलब
ले गया सब !



रात जो आई
तुझको न पाकर
नींद न लाई
 



तेरी दुनिया
बन न पाई, आह!
मेरी दुनिया



तुझ को पाया
तो फिर अकेला क्यूँ
खुद को पाया



कैसा ये रब
चलाए अपनी ही
जाने तो सब !



दूरी ने लूटा
मिलना ज़रूरी था
तिलिस्म टूटा
(तिलिस्म – जादू)



दिल ये फिर
पुराने मश्गलों से
गया है घिर