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हाइकु 112 / लक्ष्मीनारायण रंगा

रचनाकार
नुंवी दुनिया रच
सुपनां ना जी


बाजारवाद
मरै है साहित री
आत्मा‘र मोल


टूट तारै नैं
कोई भी नईं देखै
ध्रुतारो बण