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हाइकु 178 / लक्ष्मीनारायण रंगा

आंधी कोनी आ
मन री होबाड़ है
मरूभोम री


जीवण तो है
खेल लूणाघाटी रो
भंवता ई रौ


धरती सै‘वै
सगळां री धमीड़ा
माता है नीं आ