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हाइकु 184 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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बधै मैं‘गाई
सुरसा मूंढै दाई
बचै न पाई
सभ्य मिनख
तन सूं लागै हांसो
मन बुगलो
म्हैं सदा रैयो
सदा सदा रैवूंला
पंचतत्व हूं