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हाइकु 2 / प्रियंका गुप्ता

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11
कुछ यादें थी
तुमने बिखरा दी
कैसे बटोरूँ?

12
पीले पत्ते थे
शाख ने गिरा दिए
कच्चा था रिश्ता।

13
आज़ाद पंछी
कब किसी का हुआ
झट से उड़ा।

14
परछाइयाँ
यहाँ-वहाँ बिखरी
दर्द से भरी।

15
गले मिलते
मौका जब मिलता
छुरा भौंकते।

16
जीवन-रेत
बंद मुठ्ठी से झरी
थामी न गई।

17
पूस की रात
मेरे साथ ठिठुरे
मेरा साया भी।

18
भूखा बालक
चाँद को निहारता
रोटी सोचता।

19
रिश्तों की धूप
आँगन में उतरी
सहला गई।

20
सजीला चाँद
दूल्हा बन कर आया
तारे बराती।