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हाइकु 40 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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थारी निजर
भर दै म्हारै रूं-रूं
केसर-गंध


नितूगै देखां
अेक-दूजे रा चै‘रा
पढां कद हां?


घरां मांय ई
भोगै रावण-कैद
अजै सीतावां