भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथां नै हथियार चाइजै / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथां नै हथियार चाइजै
वांनै तौ नीं प्यार चाइजै।

रोळौ-बैधौ आज माचर्यौ
किरतब नीं अधिकार चाइजै।

फेरूं आग्या धोळपोसिया
चानस केई बार चाइजै।
मांगै सगळा राज-काज अब
जन री पण हूंकार चाइजै।

राज हुवै जद तंत-बायरौ
तारणियौं करतार चाइजै।

भाई बरगौ मीत मान ले
बखत-बखत- फटकार चाइजै।

चेत मुसाफ़िर मिनख जात नै
आज फगत सिणगार चाइजै।