Last modified on 2 अगस्त 2020, at 19:21

हाथी की छींक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

छींक आई हाथी भाई को,
उडी गिलहरी दीदी।
रहती थी कलकत्ते में पर,
पहुँची दिल्ली सीधी।
बोली अगर छींकते जमकर,
मजे बहुत आ जाते।
छोड़ प्रदूषित दिल्ली को हम,
पेरिस में बस जाते।