Last modified on 3 जुलाई 2010, at 03:44

हाथ-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’

कुछ लोग
जुबान चला रहे थे
कुछ लोग
हाथ चला रहे थे
कुछ लोग
इन पर
बात चला रहे थे
मामला शांत हुआ !
अब
लोग बतिया रहे थे;
मामला सुलझाने में
हमारी जुबान थी
कुछ ने कहा
हमारी बातों का
सिलसिला था
कुछ ने कहा
इस समझाइश में तो
हमारा ही हाथ था
में
ढूंढ रहा था
उन हाथों को
जिसने रचा था
इस घटनाक्रम को
आद्योपांत !