Last modified on 17 अगस्त 2020, at 13:19

हाथ की लकीरें / हरिमोहन सारस्वत

बहुत पहले
एक नजूमी ने कहा था-
विदेश जाने का योग है
 तुम्हारे हाथ की लकीरों में !
मैं हंस दिया था
मैंने कभी नहीं चाहा
इस धरती की आबो-हवा को छोड़
पराए देश जाना

अचानक तुम मिली
जिन्दगी की अहम मोड़ पे
जब मुझे जरूरत थी
सांसों में आस की
मन में विश्वास की
कि... तुम्हारा साथ पाकर
मैं फिर मुस्कुराने लगा था

और..

तुम्हारे साथ चलते-चलते
एक दिन अचानक
पता नहीं कैसे
मैंेने खुद को पाया
न्यूयार्क की गलियों में
जहां बेस्ट ब्राउन ब्रेड बिकती है

मैं बहुत खुश था
पर एक सवाल घूमता है
वक्त से पहले
मेरे न्यूयार्क जाने को
उस नजूमी ने कैसे जाना ?

गर तुम्हे पता हो
तो बताना जरा..