भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथ फैलाने अंदाज़ सिखाता क्यूँ है / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 16 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है /...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथ फैलाने के अंदाज़ सिखाता क्यूँ है
राहतें दे के मुझे इतना झुकाता क्यूँ है

खिड़कियाँ खोल कि मौसम का तुझे इल्म रहे
बन्द कमरे की तरह ख़ुद को बनाता क्यूँ है

तितलियाँ लगती हैं अच्छी जो उड़ें गुलशन में
तू उन्हें मार के एलबम में सजाता

तू है तूफ़ान तो फिर राजमहल से टकरा
मेरी बोसीदा-सी दीवार गिराता क्यूँ है

टूट के गिर न पड़ें अश्क मेरी आँखों से
बेवजह दोस्त मुझे इतना हँसाता क्यूँ है.