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हाथ मऽ आरती नऽ खोळा मऽ पाती / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

”हाथ मऽ आरती, नऽ खोळा मऽ पाती,
चलो म्हारी सई ओ, रनुबाई पूजाँ।
पूजतजऽ पूजतजऽ ससराजी न देख्या,
केतरा जाय पूत, म्हारी बहुवर वाँजुली।
असला-मसला कहाँ तक सहूँ हो,
एक वार तो टूटो म्हारी माता, डोंगर की देवी।
हळवा गयो होय तो हळई घर आवऽ,
खेलवा गयो होय तो खेली घर आवऽ,
पालणा को बाळो पालणऽ झूल,
सड़क को बाळो सड़क पर खेलऽ,
मजघर को बाळो मजघर जीमऽ म्हारी माता!
सोना की टोपली न मोती का जवारा,
दुहिरा रथ सिंगारूँ म्हारी माता!
एक बालूड़ो द!!