Last modified on 3 अक्टूबर 2011, at 14:15

हाथ हरियाली का इक पल में झटक सकता हूँ मैं / नोमान शौक़

Thevoyager (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 3 अक्टूबर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाथ हरियाली का इक पल में झटक सकता हूँ मैं
आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं

मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ मेहर-ओ-माह से
अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं

इक ज़माने बाद आया हाथ उसका हाथ में
देखना ये हैं मुझे कितना बहक सकता हूँ मैं

आईने का सामना अच्छा नहीं है बार-बार
एक दिन अपनी भी आँखों में खटक सकता हूँ मैं

कश्तियाँ अपनी जलाकर क्यों तुम आए मेरे साथ
कह रहा था मात खा सकता हूँ थक सकता हूँ मैं

है सारे तसलीम1 ख़म2 तेरी हुकूमत के हुज़ूर
एक हद तक ही मगर पीछे सरक सकता हूँ मैं

अब इसे गर्काब3 करने का हुनर भी सीख लूँ
इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं

1- स्वीकार
2- मुड़ाव, कमी
3- डुबाना