Last modified on 6 सितम्बर 2016, at 01:23

हाय चील / सुशील कुमार झा / जीवनानंद दास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीवनानंद दास |अनुवादक=सुशील कुमा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाय चील,
हाय सुनहरी चील!
और मत रोओ तुम,
इस भीगी दोपहरी में,
नदी के ऊपर उड़ती हुई।

तुम्हारी ये वेदनामयी चीखें,
याद दिलाती है मुझे
उन म्लान आँखों की,
थी तो जो रूप की राजकुमारी,
पर चली ही गई
समेट कर अपने सौन्दर्य को,
क्यों बुलाती हो उसे फिर से?
क्यों फिर से जगाना चाहती हो वही वेदना,
छेड़ कर जख्म दिलों के?

हाय चील,
हाय सुनहरी चील!
और मत रोओ तुम,
आँसुओं से नम इस दोपहरी में,
नदी के ऊपर उड़ती हुई।