Last modified on 13 जुलाई 2020, at 13:51

हाय रे! ये माह फाग / अभिषेक कुमार अम्बर

हाय रे ! ये माह फ़ाग दिल में लगाये आग,
गोरियों को देख प्रेम उमड़े है मन में।
लगती हैं लैला हीर नजरों से मारें तीर,
बिज़ली सी दौड़ पड़े सारे ही बदन में ।
बन गया में शिकार हाय बैठा दिल हार,
उसकी ही सूरतिया बसी अखियन में।
दिल को नहीं करार हाये होलीका है इंतज़ार
रंगों में रंगूँगा तुझे रंगीले सजन में।