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{{KKRachna
|रचनाकार= जॉन एलिया
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<poem>
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई
 
एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
 
बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई
 
सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी
 
उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी
उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी
 
उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई
तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई
 
तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल कह थी खराब और खराब की गई
 
एक ही हादसा तो है और वो यह कह आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
 
बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यहाँ फिर तेरी याद भी गई
उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
इक एक गली की बात थी और गली गली गयी
</poem>
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