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हालात की तस्वीर बदल जाए तो अच्छा / आलोक यादव

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हालात की तस्वीर बदल जाए तो अच्छा
हाकिम जो मेरा ख़ुद ही सँभल जाए तो अच्छा

ये उसका अहं प्यार में ढल जाए तो अच्छा
रस्सी तो जली बल भी निकल जाए तो अच्छा

भड़के अभी कुछ और यूँ ही क्रांति की ज्वाला
कुछ देर अभी फ़ैसला टल जाए तो अच्छा

आँधी में जो इक दीप जलाया है किसी ने
बेकार न ये उसकी पहल जाए तो अच्छा

फट जाएँ न संताप से ये तन की शिराएँ
आँखों से लहू बन के निकल जाए तो अच्छा

अन्याय ने भर दी है बहुत आग दिलों में
लंका ही कहीं इसमें जो जल जाए तो अच्छा

तारीख़ पे तारीख़ बदल दे न गवाही
मुंसिफ़ ही अदालत का बदल जाए तो अच्छा

खुल जाएगा सब इसके हर इक शे’र में क्या है
लोगों में न ये मेरी ग़ज़ल जाए तो अच्छा

सम्बन्ध निभाने को है संवाद ज़रूरी
'आलोक' अगर बर्फ़ पिघल जाए तो अच्छा