भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिचकते औ' होते भयभीत / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हिचकते औ' होते भयभीत

सुरा को जो करते स्‍वीकार,

उन्‍हें वह मस्‍ती का उपहार

हलाहल बनकर देता मार;


मगर जो उत्‍सुक-मन, झुक-झूम
हलाहल पी जाते सह्लाद,
उन्‍हें इस विष में होता प्राप्‍त
अमर मदिरा का मादक स्‍वाद।