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हिचकियाँ लेता हुआ दुनिया से दीवाना चला / शमीम तारिक़

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हिचकियाँ लेता हुआ दुनिया से दीवाना चला
जाँ-कनी के वक़्त तेरा ही अफ़्साना चला

मैं जुनून-ए-इश्क़ में जाने कहाँ तक आ गया
शहर के हर मोड़ से पत्थर जुदागाना चला

ख़ून की गर्दिश में शामिल हो गई दिल की उमंग
कू-ए-क़ातिल की तरफ़ बे-इख़्तियाराना चला

मौसम-ए-गुल ज़र्द है ख़ून-ए-तमन्ना के बग़ैर
नक़्द-ए-जाँ लेकर चमन में सरफ़रोशाना चला

मौत के साए में ‘तारिक़’ आरज़ू की धूप थी
कारोबार-ए-ज़िंदगी बे-ए‘तिबाराना चला